आजादी की 72वीं सालगिरह मुबारक

72 वाँ स्वतन्त्रता दिवस

आजाद मानसिकता और गुलाम देश से मुक्ति पा कर गुलाम मानसिकता और आजाद देश की 72 वीं सालगिरह की सबको बधाई. एक देश के रूप में भारत को बने आज 71 साल हो गये हैं. इस बीच हम सुई तक ना बना सकने वाले देश से मिसाइल बनाने वाले देश तक पंहुचे हैं. हम और आगे भी जायेंगे. पर क्या यह वह सहर है जिसके लिये हम चले थे? फैज ने आजादी पर एक बेहद उम्दा ग़ज़ल लिखी थी. उसे यहाँ पर उद्धृत करना अत्यंत आवश्यक है:

यह दाग़-दाग़ उजाला, यह शब गज़ीदा सहर
वो इंतज़ार था जिसका यह वो सहर तो नहीं
यह वो सहर तो नहीं जिसकी आरज़ू लेकर
चले थे यार कि मिल जाएगी कहीं न कहीं

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चले चलो के ये मंजिल अभी नहीं आई

शहीद भगत सिंह ने अपने विचारों में कहा है कि वे देश नहीं अपितु व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के लिए लड़ रहे हैं. जब तक विचारों की आजादी नहीं होगी तब तक सीमाओं की आजादी बेमानी है. राजनैतिक स्वतन्त्रता हमें मिली; हम डोमिनियन स्टेट से आज एक पूर्णतया स्वतंत्र राज्य बन गये हैं. हम किसी राज के अधीन नहीं; हम पांच वर्ष में अपनी स्वयम की सरकार चुनते हैं. हमारे सभी किये गये कार्यों की जिम्मेदारी हमारी है. यह देश हम स्वयम चलाते हैं और इसकी सभी सफलताओं और विफलताओं के लिए हम स्वयम जिम्मेदार हैं. धर्म के आधार पर दो देश बनना; लगभग साढ़े पांच सौ रियासतों ने दो राष्ट्रों के रूप में अपनी पहचान आज से 71 वर्ष पहले पाई थी. राजशाही से लोकतंत्र तक का यह सफर अत्यंत दुष्कर रहा.

70 के दशक में एक अच्छी फीचर फिल्म आई थी जिसका नाम था “हम हिन्दुस्तानी”. सुनील दत्त की इस फिल्म का एक गीत राजनैतिक पार्टियों की जान है. “छोड़ों कल की बातें; कल की बात पुरानी” नामक इस गीत में एक पैरा है जिसमें लिखा है:

“आज पुरानी ज़ंजीरों को तोड़ चुके हैं

क्या देखें उस मंज़िल को जो छोड़ चुके हैं

चांद के दर पर जा पहुंचा है आज ज़माना

नए जगत से हम भी नाता जोड़ चुके हैं

नया खून है नई उमंगें, अब है नई जवानी”

आज यह गीत फिर से याद आया. “जंजीरें” यह शब्द महत्त्वपूर्ण है; जंजीरे कई प्रकार की होती हैं; कुछ जंजीरें सामाजिक होती हैं; कुछ राजनैतिक हो सकती हैं तो कुछ धार्मिक होती हैं. फलां से ब्याह नहीं करना; फलां गलत है; फला सही है यह जंजीरें सामाजिक हैं. फलां व्यक्ति इसलिए गलत है कि वह फलां धर्म को फ़ॉलो करता है यह धार्मिक जंजीरें हैं तो फलां व्यक्ति फलां राजनीतिक पार्टी से जुड़ा है अतः वह सही है अथवा गलत है तो ये राजनैतिक जंजीरे हैं. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मानते थे कि भारत की स्थिति ऐसी नहीं कि उसे पूर्ण स्वतन्त्रता दी जाए; उसे आंशिक स्वतन्त्रता देकर एक कठोर तानशाह की जरूरत है. यह बात उन्होंने आल इण्डिया रेडियो को एक भाषण में कही थी.

हम एक ऐसे देश के बाशिंदे हैं जहाँ हम नैतिक रूप से अत्यंत बलवान हैं पर हमारी नैतिकता केवल इस बात से खत्म हो जाति है कि हमारे बच्चे किसी अन्य जाति में ब्याहे जाते हैं. हमारी नैतिकता का पैमाना बहुत खतरनाक है; भारत में गूगल पर सबसे ज्यादा सर्च करने वाली सेलिब्रिटी सन्नी लियोन है पर उसके ऊपर कोई फिल्म बनती है तो हमारी नैतिकता के ऊपर एक बहुत बड़ा कुठाराघात होता है. हम मन्दिर और मस्जिद के नाम पर लड़ भी सकते हैं और मर भी सकते हैं. आधा देश तो केवल इस बात पर कन्फ्यूज है कि वह पहले देश के लिए लड़े अथवा धर्म के लिए या फिर मानवता के लिए लड़े. धर्म को तिलांजली देने वाला यहाँ वामपंथी और यहाँ के सबसे बड़े धर्म हिन्दू धर्म (जिसका नाम किसी भी धर्म ग्रन्थ में नहीं आता है) की आलोचना करने वाला हर एक पुरुष मुल्ला (मुस्लिम धर्म का समर्थक) माना जाता है. हम मस्जिद तोड़ने के नाम पर जानें ले सकते हैं; धर्म के नाम पर देश की सीमाओं का बंटवारा कर सकते हैं. हम इमानदार हैं लेकिन ट्रेफिक चालान के समय पर जान पहचान वाले की सिफारिश ढूंढ सकते हैं. हमें ईमानदार सरकार चाहिए लेकिन अपने बेटे का रोल नम्बर किसी जानकार को अथवा पैसा लेने वाले को देना पसंद करते हैं. हम भ्रष्टाचार को कलंक मानते हैं लेकिन फिर भी नैतिक और आर्थिक रूप से भ्रष्ट हैं. हमें धर्म के नाम पर क़ानून चाहिए; हम आधुनिक संविधान की जगह सड़ी गली शरियत की व्यवस्था को लागू करना चाहते हैं. तिलक, पगड़ी, टोपी हमारी नैतिकता की पहचान है. हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है लेकिन गंगा के अंदर सबसे पहले हम गंदगी डालेंगे फिर उसकी सफाई के नाम पर 75 सौ करोड़ रूपये खा जायेंगे. फिर भी मरने मारने को तैयार हो जायेंगे. हम मानसिक तौर पर कहीं धर्म, कहीं व्यवस्था, कहीं जाति तो कहीं राजनैतिक सोच के गुलाम हैं. स्वतंत्र विचार पर पहले भी हम फांसी पर लटकते थे और आज भी लटकते हैं. गांधी से हमें इसलिए दिक्कत हुई की उसने कथित तौर पर हिन्दू विरोधी कार्य किया तो अन्धविश्वास से मुक्ति दिलाने के लिए कार्य करने वाले आज गोली के शिकार बनते हैं. एक समय था जब प्लूटो को इस बात के लिए मुकद्दमे का सामना करना पडा था कि उसने कहा था कि पृथ्वी गोल है तो आज कुछ वैज्ञानिक रूप से विरोधाभासों का विरोध करने पर हत्या हो जाती है. हम आज भी यह नहीं समझ पाए हैं कि हमें तवज्जो किसे देनी चाहिए राष्ट्रवाद को; धर्म को अथवा मानवता को? हम राष्ट्रवाद की सही और सच्ची भावना से भी मरहूम है. समस्त राष्ट्र के नागरिको का सम्मान और उनकी रक्षा ही तो राष्ट्रवाद है. पर क्या यह भावना हम ला पाए हैं? सेलेक्टिव राष्ट्रवाद को उठा गर्व महसूस करने वाले ग्रुप्स बाकियों को देशद्रोही अथवा पाकिस्तानी बताने में भी गुरेज नहीं करते. इस देश के सम्मान के लिए दिन रात जद्दोजहद करने वाले लोगों को भी सेलेक्टिव राष्ट्रवाद में देशद्रोही बता दिया जाता है. स्वयम को पढ़े लिखे बताने वाले लोग आज भी दूसरी जाति अथवा धर्म में शादी तक करने पर मरने और मारने पर उतारू हो जाते हैं. सालों साल से चले आ रहे इस कार्य के बीच हम सच में आगे भी बढ़े हैं. हम सोफ्टवेयर में वर्ल्ड लीडर हैं; हम एक बहुत बड़ा अंतर्राष्ट्रीय बाजार हैं; हम चाँद तक लगभग पंहुच ही गये हैं; हम परमाणू देश हैं; पूर्णतया साधन सम्पन्न हमारी सेना विश्व की चुनिन्दा मजबूत सेनाओं में से एक है. हमारे आइआइटी और आईआईएम विश्व में धाक रखते हैं. सीमित संसाधनों के बावजूद भी हम अनाज के मामले में पूर्णतया स्वनिर्भर हैं. लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकि है. मंजिल अभी बहुत दूर है. मैं धर्म/मजहब आदि का घोर विरोधी हूँ लेकिन हमेशा सोचता हूँ कि गर सभी इन सीमाओं को तोड़ एक साथ रहें तो यह देश सच में बहुत खूबसूरत है. हम शायद आने वाले खतरों को देख और समझ नहीं पा रहे हैं. यह विश्व आतंकवाद से प्रताड़ित हो धीरे धीरे तीसरे विश्वयुद्ध की ओर बढ़ रहा है. हमारे संसाधन धीरे धीरे कम हो रहे हैं. प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता कम हो रही है; अन्नदाता अपने सीमित संसाधनों के कारण धीरे धीरे कमजोर हो रहा है. जंग सीमित संसाधनों और विकास की हो; अदम गोंडवी साहब ने दो ही पंक्तियों में सार व्यक्त किया है:

छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये

हम सब मिल जुल कर रहें; मेहनत करें; स्वयम को और इस देश को आगे ले जाएँ; शिक्षा की श्रेणी में हमारा देश अग्रणी बने; हमारी सोच वैज्ञानिक हो; हम समाज के सही रूप को समझें; हम किताबी नहीं अपितु मानसिक तौर पर इमानदार हों; मेरी आज यही तमन्ना है.

जय हिन्द

वन्दे मातरम