मैं क्यों खड़ा हूँ?

मैं क्यों खड़ा हूँ?
भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन में आम आदमी क्यों खड़ा रहा? यह प्रश्न अब आम हो गया है. एक छोटी सी कविता इस बात को लेकर मैंने रची है.
समाचारों में देख कर चुन्नी लाल जी एक दिन जा पंहुचे धरने पर,
उन्हें देख पड़ोस के नेता जी परेशान,
पुछा तुम क्या करोगे चुन्नी लाल?
तुम न तो सामजिक कार्यकर्ता हो,
तुम न ही कोई सर्वमान्य नेता हो,
तुम्हारी गर कोई परेशानी है तो कह डालो,
अनशन धरने पर बैठ अपने ऊपर बोझ न डालो.
क्या तुम्हें किसी ने सरकार के विरुद्ध खड़ा किया है,
लगता है है विपक्ष ने तुम्हारा इस्तेमाल किया है,
मेरी बात मानो अपने घर को जाओ,
राजनीति नेताओं का काम होती है,
आपके लिए नहीं.
अब तक ठठक से गए चुन्नी लाल जी सोचने लगे,
क्या मैं इस देश में चलने लायक हूँ?
क्या मैं इस देश के अन्दर कुछ बोलने लायक हूँ?
क्या इस देश में अपनी आवाज उठाना राजनीति है?
क्या मैं राजनीति करने लायक हूँ?
तभी भीतर से आवाज आई,
चुन्नी लाल….!
तुम एक आम आदमी हो,
आम आदमी, तुम्हारे मत से नेता बनेंगे,
आगे जाके तुम्हारा खून पियेंगे,
फिर कहेंगे तुम्हें अधिकार कहाँ कानून तोड़ने का,
फिर हवालात में जाने से अच्छा अपने घर जाओ और भारत का मशहूर तमाशा देखो,
जहाँ आम आदमी की बातें तो होती हैं, पर उसकी सुने बिना.
—रविन्द्र सिंह ढुल, जींद, दिनांक: १५-०६-२०११

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