भारतीय भाषाओँ का विनाश और इंग्लिश
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन, पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन ।।
क्रांति का अर्थ
क्रांति का अर्थ:
क्रांति का आज कल हर जगह मजाक उड़ाया जा रहा है.कभी ये आन्दोलन तो कभी वो आन्दोलन, लगता है जैसे भारतवर्ष में आंदोलनों की बहार आ गयी है.पंद्रह अगस्त क्या आई रामदेव जी ने अगस्त क्रांति का ऐलान कर दिया. कुछ ही दिन बीते थे जब अन्ना हजारे जी एक क्रांति का नेतृत्व कर रहे थे….अब ज़रा जन-मानस को कौन समझाए कि “अगस्त क्रांति” का भारत वर्ष में दूसरा उदाहरण कभी भी पैदा नहीं हो पायेगा. जमीर के बिना क्रांति संभव नहीं है…यदि हमारे विचार पवित्र हैं तो हम अवश्य एक ऐसी क्रांति ला पायेंगे जो समाज को कुछ हद तक बदलने में सहायक हो. पर तब तक हमें प्रयास अवश्य करने होंगे. अब ज़रा क्रांति के नायकों के बारे में बात कर ली जाए. एक बात पूरी तरह से सही है कि क्रांति कभी भी कोई नायक पैदा नहीं कर सकता. इसका उल्टा बिल्कुल सही है, क्रांति हमेशा से नायक पैदा करती रही है…जनता जब व्यवस्था परिवर्तन के लिए उठ खड़ी होती है तो नायक अपने आप मिल जाते हैं. भारत में यह हमेशा एक प्रश्न जनमानस में कोंधता रहता है कि क्या भारत वर्ष को गाँधी जी ने आजादी दिलवाई थी? इसके लिए हमें गाँधी जी को समझना होगा. उन कारणों को समझना होगा जो गाँधी जी को वह बना गए जो वे आज हैं. एक सीधी साधी वकालत करने वाला और सफल बैरिस्टर किस लिए लंगोट पहन कर इतिहास बनाने कूद पडा. इसका उत्तर आपको दक्षिण अफ्रीका में उस समय उठ रहे विद्रोह में मिलेगा जिसका शांति पूर्वक नेतृत्व करके गाँधी जी भारत में एक नायक के रूप में प्रथम विश्वयुद्ध के समय जाने गए. भारत में उसका उत्तर आपको उनके राजनैतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले और उस समय के सैंकड़ों बड़े नेताओं में मिलेगा जिनकी विचारधारा नें गाँधी जी को एक धोती में आने में मजबूर किया. क्या गाँधी जी ने अफ्रीका में विद्रोह पैदा किया या अफ्रीका में विद्रोह से गांधी जी पैदा हुए? क्रान्ति के नायक का उत्तर आपको यहाँ मिलेगा. आज के समय में जनमानस उबल पड़ने का बहाना ढूंढ रहा है. व्यवस्था परिवर्तन के लिए आवाज उठाने वाले हर एक नेता के साथ लाखों लोग खड़े हो जाते हैं. फिर वे नायक घमंड में चूर अपने आपको उस क्रांति का जनक मान लेते हैं जिसको पैदा करने की ताकत एक व्यक्ति में कभी भी नहीं हो सकती. हाँ ये हो सकता है कि वह व्यक्ति अपनी विचार धारा से क्रांति की दिशा को तय कर दे या उस व्यक्ति के द्वारा दिखाए गए रास्ते पर जनमानस को सफलता मिले. जय प्रकाश नारायण के आन्दोलन के समय राष्ट्र कवि दिनकर की कविता”सिंहासन खाली करो कि जनता आती है” क्रांति के सही स्वरुप को दर्शाती है. आवश्यक नहीं कि मैं अपने विरोध को केवल एक रूप में प्रकट करूँ..किसी भी क्रांति में इतनी ताकत अवश्य होती है कि वह सभी विचारधाओं को समाहित करले. गांधी जी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने भगत सिंह या चन्द्र शेखर आजाद! तो फिर क्रांति का केवल एक नायक कैसे हुआ? अठारह सो सत्तावन के विद्रोह को झांसी वाली रानी कि बहादुरी के लिए याद रखा जाता है, क्या उस क्रांति में मंगल पण्डे, तात्यां टोपे, नाना साहिब या उनके जैसे हजारों नायकों का कोई योगदान नहीं था. उस क्रांति ने वे सब नायक पैदा किये थे.
एक पुराना दोहा है जो क्रांति के नायक को परिभाषित करता है ” शूरा सो पह्चनिए, जो लडे दीन के हेत. पुर्जा पुर्जा कट मरे, कबहूँ ना छाडे खेत “. क्या ऐसा शूरवीर केवल एक या दो होते हैं. क्या भगत सिंह को याद करते हुए हम दुर्गा भाभी को भूल जाते हैं या ग़दर पार्टी के नायक करतार सिंह सराभा को भूल जाते हैं. क्या हम पटेल को समझे बिना गाँधी को समझ पायेंगे. क्या इतिहास इस बात का गवाह नहीं है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा उठाया गया छोटा सा कदम जो शायद भारत को आजाद करवाने में भले ही कारागार न साबित हुआ हो, वह कदम इतना महान था कि नेताजी के नाम पर आज भी हजारों लाखों युवा जीने मरने की कसमें खाते हैं. क्रांति के नायक का केवल एक ही धर्म है कि वह अपने स्वार्थ के लिए नहीं राष्ट्र हित में लड़े फिर चाहे उसे सफलता मिले या असफलता, क्रांति असफल नहीं होती.यही ऊपर के दोहे का सार है. क्या आज के हमारे तथाकथित नायक इस परिभाषा में सटीक बैठते हैं? दिनकर की एक और महान रचना के कुछ शब्द उदृत करना चाहूँगा “चिटकाई जिनमें चिंगारी,जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर-लिए बिना गर्दन का मोल। कलम, आज उनकी जय बोल” ये है क्रांति और ये हैं क्रांति के नायक.
क्रांति कभी असफल नहीं होती, जब तक कि वह अपने अंजाम तक न पंहुच पाए. यदि असफल हुई तो वह क्रांति नहीं हो सकती. रूस के शब्दों में कहें “Long Live Revolution” यानी “इन्कलाब जिंदाबाद”. किसी भी व्यक्ति विशेष से ऊपर राष्ट्रप्रेम से भरपूर क्रांति के अर्थ को छोटा होते देख कर दुःख होता है.
पर क्या भारत सीखेगा? क्या इसके नागरिक सीखेंगे यह बात कि मतभेद होना कभी भी क्रांति को कमजोर नहीं करता अपितु उसे सही दिशा देता है क्योंकि कमी पकड़ में आती है.या क्रांति अभी नहीं आई है, ज़रा सोचिये!
माँ भारती आपके मार्ग को प्रशस्त करे. जय हिंद!