तमन्ना का फूल

तमन्ना आज बगीचे में अकेली घूम रही थी. सामने उसका पसंदीदा पौधा था; बेहद सुन्दर रंग वाले फूल खिलते थे उसपर. केवल एक ही समस्या थी; उसमें कांटे थे…बहुत पैने कांटे जो कभी भी चुभ सकते थे. पर तमन्ना को वह पौधा जान से प्यारा था. आज उसने फूलों से छेड़खानी की ठान ली थी. जैसे ही उसने छूने की …

बाहर किसकी है माया

एक खूबसूरत गीत है, उसकी शुरूआती पंक्तियाँ उस से भी अधिक खूबसूरत। “जे मैं तैनूं बाहर ढूँढाँ तो भीतर कौन समाया।  जे मैं तैनूं भीतर ढूँढाँ , बाहर किस दी है माया। “इस खूबसूरत पंक्ति को हम मानव चरित्र के हर पहलू के साथ जोड़ सकते हैं। यदि आप ईश्वर को मानते तो इसे ईश्वर के साथ जोड़ेंगे; यदि किसी रूठे …

याद है

याद है, तुम और मैं पहाड़ी वाले शहर की लम्बी, घुमावदार, सड़्क पर बिना कुछ बोले हाथ में हाथ डाले बेमतलब, बेपरवाह मीलों चला करते थे, खम्भों को गिना करते थे, और मैं जब चलते चलते थक जाता था तुम कहती थीं , बस उस अगले खम्भे तक और । आज मैं अकेला ही उस सड़्क पर निकल आया हूँ …

मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देता

मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देता सब दोष अपने संग वरता हूँ। जीवन की इस अनकही पहेली पर स्वयम् के प्राण मैं हरता हूँ। मेरे जीवन का उत्तरदायी कौन यह न कोई पूछेगा इस जीवन की अथाह व्यथा को कौन अपने संग वरेगा? चल निकला मैं अब उस सफ़र पर, जिसका न कोई अंत है, जिसकी न कोई परिधि है, …

पास खडा था भ्रष्टाचार

सुबह उठ कर आँख खुली तो पास खडा था भ्रष्टाचार, अट्टहास लगाता हुआ, प्रश्न चिह्न लगाता हुआ. जब पूछा मैंने, तुझमें इतने प्राण कहाँ से आये, के तुम बिन पूछे, बिन बताए मेरे घर भी दौड़ आये. हंसता हुआ, वो बोला, तुम शायद अवगत नहीं, कल रात ही संसद में मुझे जीवनदान मिला है. देश शायद सो रहा था, दिवा …

हाँ मैं चलती हूँ

हाँ मैं चलती हूँ तुमने मुझे चलने से रोका तुमने मुझे जीने से रोका तुमने मुझे गाने से रोका तुमने मुझे खाने से रोका मेरे कदम कदम पर कांटे बिछाये पर मेरे कदम कभी न रुक पाये फिर भी मैं चलती हूँ चलते चलते खिलती हूँ चलते चलते जलती हूँ मगर फिर भी मैं चलती हूँ सोचते तो बहुत होंगे तुम …

गर तुम होते पास

गर तुम होते पास तो श्वासों को पहचान मिलती तो अधरों की वह प्यास बुझती तो जीवन को नव पहचान मिलती आते जब तुम मेरे पास तो इक नव गीत मैं गुनगुनाता मेरी नयी पहचान बनाता लेट जाता उस गोद में जिस गोद में बसता जीवन है सहलाता उन केशों को कर चक्षु को बंद जब स्वप्न लोक आता तो …

मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देता

मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देता सब दोष अपने संग वरता हूँ। जीवन की इस अनकही पहेली पर स्वयम् के प्राण मैं हरता हूँ। मेरे जीवन का उत्तरदायी कौन यह न कोई पूछेगा इस जीवन की अथाह व्यथा को आखिर कौन अपने संग वरेगा? चल निकला मैं अब उस सफ़र पर, जिसका न कोई अंत है, जिसकी न कोई परिधि …

क्या बड़ा है?

धर्म और नैतिकता में से क्या बड़ा है? यह एक बेहद गंभीर प्रश्न है जिससे मैं इस समय रूबरू हो रहा हूँ एक पुस्तक में। मैं नास्तिक हूँ या आस्तिक तो भी नैतिक हो सकता हूँ, पर धार्मिक नहीं। यदि मैं सही मायने में धार्मिक हूँ तो नैतिकता को अपने अन्दर समाहित कर लेता हूँ, पर नैतिक होने पर मेरे …