याद है

याद है, तुम और मैं पहाड़ी वाले शहर की लम्बी, घुमावदार, सड़्क पर बिना कुछ बोले हाथ में हाथ डाले बेमतलब, बेपरवाह मीलों चला करते थे, खम्भों को गिना करते थे, और मैं जब चलते चलते थक जाता था तुम कहती थीं , बस उस अगले खम्भे तक और । आज मैं अकेला ही उस सड़्क पर निकल आया हूँ …

मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देता

मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देता सब दोष अपने संग वरता हूँ। जीवन की इस अनकही पहेली पर स्वयम् के प्राण मैं हरता हूँ। मेरे जीवन का उत्तरदायी कौन यह न कोई पूछेगा इस जीवन की अथाह व्यथा को कौन अपने संग वरेगा? चल निकला मैं अब उस सफ़र पर, जिसका न कोई अंत है, जिसकी न कोई परिधि है, …

पास खडा था भ्रष्टाचार

सुबह उठ कर आँख खुली तो पास खडा था भ्रष्टाचार, अट्टहास लगाता हुआ, प्रश्न चिह्न लगाता हुआ. जब पूछा मैंने, तुझमें इतने प्राण कहाँ से आये, के तुम बिन पूछे, बिन बताए मेरे घर भी दौड़ आये. हंसता हुआ, वो बोला, तुम शायद अवगत नहीं, कल रात ही संसद में मुझे जीवनदान मिला है. देश शायद सो रहा था, दिवा …

हाँ मैं चलती हूँ

हाँ मैं चलती हूँ तुमने मुझे चलने से रोका तुमने मुझे जीने से रोका तुमने मुझे गाने से रोका तुमने मुझे खाने से रोका मेरे कदम कदम पर कांटे बिछाये पर मेरे कदम कभी न रुक पाये फिर भी मैं चलती हूँ चलते चलते खिलती हूँ चलते चलते जलती हूँ मगर फिर भी मैं चलती हूँ सोचते तो बहुत होंगे तुम …

गर तुम होते पास

गर तुम होते पास तो श्वासों को पहचान मिलती तो अधरों की वह प्यास बुझती तो जीवन को नव पहचान मिलती आते जब तुम मेरे पास तो इक नव गीत मैं गुनगुनाता मेरी नयी पहचान बनाता लेट जाता उस गोद में जिस गोद में बसता जीवन है सहलाता उन केशों को कर चक्षु को बंद जब स्वप्न लोक आता तो …

मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देता

मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देता सब दोष अपने संग वरता हूँ। जीवन की इस अनकही पहेली पर स्वयम् के प्राण मैं हरता हूँ। मेरे जीवन का उत्तरदायी कौन यह न कोई पूछेगा इस जीवन की अथाह व्यथा को आखिर कौन अपने संग वरेगा? चल निकला मैं अब उस सफ़र पर, जिसका न कोई अंत है, जिसकी न कोई परिधि …

क्या बड़ा है?

धर्म और नैतिकता में से क्या बड़ा है? यह एक बेहद गंभीर प्रश्न है जिससे मैं इस समय रूबरू हो रहा हूँ एक पुस्तक में। मैं नास्तिक हूँ या आस्तिक तो भी नैतिक हो सकता हूँ, पर धार्मिक नहीं। यदि मैं सही मायने में धार्मिक हूँ तो नैतिकता को अपने अन्दर समाहित कर लेता हूँ, पर नैतिक होने पर मेरे …

जीवन की विशिष्टता

हमारे जीवन की विशिष्टता इस बात में है कि हम असंभव एवं मुश्किल परिस्थितियां का सामना किस प्रकार करते हैं। लघु बुद्धि वाला मनुष्य स्वयं को इस प्रकार की परिस्थितियों में समाप्त कर लेता है तथा स्थिर बुद्धि वाला मनुष्य इस प्रकार की परिस्थितियों  में स्वयं को संयमित रख जीवन यापन करता है। कहते हैं यदि रास्ता मुश्किल हो तो …

ज्ञान असत्य है

समस्त ज्ञान असत्य है एवं समस्त सत्य ज्ञान का स्वरुप है। समस्त सांसारिक ज्ञान केवल मात्र तर्क की शक्ति पर टिका है एवं जब तक  वह तर्क की सीमा को पार नहीं कर देता उसे संसार ज्ञान की श्रेणी में नहीं रखता। श्री रामकृष्ण परमहँस कहते हैं कि ज्ञान विश्वास से पैदा होता है न कि तर्क से। प्रथम आपकी …

स्थिर बुद्धि की आवश्यकता

दुःखेष्वनुद्विग्मनाः सुखेषु विगतस्पृहः। वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते।।2/56 (गीता) भावार्थ: जो दुःख में विचलित न हो तथा सुख में प्रसन्न नहीं होता , जो आसक्ति, भय तथा क्रोध से मुक्त है, वह स्थिर बुद्धि वाला मनुष्य ही मुनि कहलाता है। ईश्वर कहते हैं कि मुनि अर्थात मनुष्य जीवन की सर्वोच्च अवस्था केवल उसे ही प्राप्त होती है जो सुख दुःख में सम भाव …