सुप्रीम कोर्ट ने कुछ ही दिन पहले पटाखों की बिक्री पर बैन लगाया था. इस बैन पर तरह तरह की प्रतिक्रियाएं आई उनमें से सबसे प्रमुख प्रतिक्रियाएं एक ऐसे वर्ग की आयीं जिसने यह दिखाने की कोशिश की कि सुप्रीमकोर्ट का पटाखों पर बैन हिन्दू धर्म के विरुद्ध है और सुप्रीमकोर्ट को यह बैन मुस्लिम धर्म के विरुद्ध भी लगाना चाहिए. यह प्रतिक्रिया जायज ही भाजपा एवं संघ की तरफ से आई. इस पार्टी से यही आशा रखी जा सकती थी. भाजपा से प्रगृति के बारे में सोचने एवं कुछ करने की आशा करना स्वयम को निराश करने योग्य है. यह दिमागी रूप से असहाय एवं अपंग लोगों की पार्टी बनती जा रही है. वृहद रूप से मुद्दों के बारे में चर्चा, समाज की एवं राष्ट्र की प्रमुख समस्याओं के बारे में चर्चा की न इनसे आशा की जा सकती और न ही इनके यह वश में है. गाय, गंगा, गायत्री, सरस्वती, मन्दिर आदि इनके लिए मुद्दे हैं. गरीबी, बेरोजगारी, तरक्की, विज्ञान आदि नहीं. खैर, पटाखा बिक्री पर बैन व्यापारियों के लिए कहीं न कहीं हानिकारक साबित हुआ है इसमें कोई शक नहीं और मैंने प्रमुखता से टीवी डिबेट्स में यह मुद्दा उठाया है कि व्यापारियों की यह हालत सरकार की वजह से हुई है जो अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है. ऐसे में इनके नुक्सान की भरपाई सरकार को करनी चाहिए. ज्ञातव्य है कि सुप्रीमकोर्ट ने पटाखे की बिक्री पर चिंता 2005 में ही जता दी थी. उस समय से अभी तक बारह वर्ष हो गये हैं और प्रदूषण का स्तर दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार भारत के हर नागरिक के पास है और जीवन के अधिकार में स्वच्छ वायु, जल भी शामिल है. इस अधिकार को भारत के हर नागरिक को उपलब्ध कराने के लिए माननीय सुप्रीमकोर्ट ने हजारों एतिहासिक फैंसले दिए हैं. ऐसे में सुप्रीमकोर्ट के इस फैंसले को हिन्दू विरोधी बताना मानसिक अपंगता से अधिक कुछ भी नहीं है.
सुप्रीमकोर्ट ने सबसे पहले M.C.Mehta के फैंसलों में दिल्ली से हानिकारक फेक्ट्री बाहर शिफ्ट कराई, फरीदाबाद में लगभग 1500 यूनिट फेक्टरियों की बंद कराई, अरावली को बचाने के लिए सालों से लगातार सुनवाई चल रही है. वेटलैंड को लेकर सुनवाई हो या गंगा के प्रदूषण को लेकर, दिल्ली में यमुना की सफाई हो या दस वर्ष से पुराने डीजल वाहनों का बंद करना; यह सब हमें न्यायपालिका के सौजन्य से ही मिला है. दिल्ली में CNG वाहन से लेकर ट्रेफिक पर रेगुलेशन तक सब कुछ हमें सुप्रीमकोर्ट ने ही दिया है. ऐसे में इस फैंसले को आगे रख कोर्ट को ही धर्म का विरोधी बताने वाले लोगों को क्या कहना चाहिए यह मेरी समझ से बाहर है. खैर, सुप्रीमकोर्ट के फैंसले के बाद सोशल मीडिया पर अलग अलग ट्रेंड शुरू हुए. कल मेरे एक ट्रेंड पकड़ में आया जो #मीलॉर्ड लिखने से दिख रहा था. लोगों ने जानबूझ कर यह टैग इस्तेमाल किया और अधिकाधिक पटाखे बजाये. जानकारी के अनुसार सुप्रीमकोर्ट के बाहर जाकर भी रात को पटाखे बजाए गये. कुछ शहरों में बहुतेरी जगह पर रात 9:30 के बाद आतिशबाजी शुरू हुई क्योंकि माननीय पंजाब एवं हरयाणा उच्च न्यायालय ने इस समय के बाद पटाखे चलाने पर बैन लगा रखा था. यह सब इवेंट्स कहीं न कहीं सरकार द्वारा प्रायोजित हैं क्योंकि सरकार में शामिल सांसद, विधायकों ने ही सबसे पहले फैंसले को धर्म विरोधी बताया.
पर क्या फैंसला धर्म विरोधी है? वैदिक धर्म के अनुसार यह सृष्टि पञ्च तत्वों से बनी है. वायु, जल, पृथ्वी, आकाश एवं अग्नि. हिन्दू धर्म इन पञ्च तत्वों की पूजा एवं आराधना के आस पास घूमता है. कहा जाता है कि मृत्यू के बाद शरीर इस पंचतत्व में ही विलीन हो जाता है. यही कारण है कि हिन्दू धर्म के अनुसार मृत्यु के बाद मृत शरीर को अग्नि दी जाती है. पटाखे इन पञ्च तत्वों में से कम से कम 4 तत्वों को गम्भीर रूप से नुक्सान करते हैं. हिन्दू धर्म की अग्नि पूजन विधि, वैदिक हवन विधि यह सब पञ्च तत्व की शुद्धि के लिए ही होते हैं. ऐसे में पञ्च तत्व को प्रदूषित करने वाला कुछ भी हो सकता है पर सच्चा हिन्दू नहीं. रामायण की किन्द्व्नती के अनुसार श्रीराम के आने के बाद अयोध्या में घी के दिए जलाए गये थे. ऐसे में प्रमुख मान्यता घी के दिए जलाने की है जिसे बाद में मोमबत्ती और इलेक्ट्रिकल लाइट्स से सपोर्ट कर दिया गया. पर क्या पटाखे पुरातन हिन्दू धर्म का हिस्सा थे? व्यापारीकरण के बढने के साथ इस त्यौहार पर पटाखों की बिक्री शुरू हुई. पटाखे बनने ही कुछ डेढ़ सौ वर्ष पहले प्रारम्भ हुए हैं तो यह हिन्दू धर्म का हिस्सा कैसे हुए? यह केवल व्यापारीकरण के दौर में शुरू की गयी नई प्रथा है जिसे हम पर्यावरण के लिए सहज ही छोड़ सकते हैं. मैं इस बात के पूर्ण समर्थन में हूँ कि पटाखों की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबन्ध हो और इन्हें किसी भी स्तर पर बजाने की आज्ञा न दी जाये. परम्परा अथवा प्रथा के नाम पर नववर्ष, गुरुपर्ब, दिवाली और यहाँ तक कि होली पर भी इन्हें चलाना केवल गलत ही कहा जायेगा. शादी ब्याह में भी इनके इस्तेमाल को मैं गलत मानता हूँ; यही कारण है कि स्वयम की शादी में भी मैंने इनका इस्तेमाल नहीं होने दिया था. सेहत के लिए बेहद हानिकारिक ये पटाखे कहीं भी कोई फायदा नहीं करते; ऐसे में इन्हें छोड़ना ही श्रेयस्कर है.
क्या मैं मुस्लिम समर्थक हूँ? कुछ बेहुदे व्यक्ति मेरे पटाखों के विरोध को मेरे कथित मुस्लिम धर्म समर्थन से जोड़ रहे हैं. इन्हें बेहूदा ही कहना सही है क्योंकि न उनकी भाषा ही संस्कारवान है और न ही उनके स्वयम के संस्कार ही यहाँ झलक रहे हैं. कुछ का कहना है कि मैं बकरे काटने का समर्थक हूँ. श्रीमान जी मैं जीव हत्या के इतना खिलाफ हूँ कि मैं खाने में भी पूर्णतया शाकाहारी हूँ. रही बात ईद पर बकरे कटने की तो इसका पहले भी विरोध किया था, आज भी करता हूँ और कल भी विरोध में ही मिलूंगा. मैं कोई धर्मनिरपेक्ष नहीं जो एक धर्म का समर्थन कर दूसरे का विरोध करूं. मेरे लिए सब धर्म एक समान हैं और गंदगी का घर हैं. इन्हें समाप्त कर देना ही मानवता के हित में है. फिर भले ही मुस्लिम धर्म के नाम पर चल रहा मानवीय आतंकवाद हो अथवा हिन्दू धर्म के नाम पर चल रहा गौ आतंकवाद, पटाखा आतंकवाद हो. यह उन कथित हिन्दू धर्म के हिमायतियों को ही सोचना चाहिए कि वे हिन्दू धर्म के कितना समर्थन में हैं? पंचतत्व में गंदगी फैला कर किस मूंह से आप पंचतत्व शुद्धि का नाटक करेंगे. चलिए, मैं तो चाहूँगा कि आपके घर में कोई दमा का मरीज न हो. समूचे विश्व में सबसे अधिक दमे के मरीजों को अपने अंदर समाहित किये भारतवर्ष में इतने खतरनाक प्रदूषण से आप केवल स्वयम का ही नुकसान नहीं कर रहे अपितु उन लाखों बच्चों और बूढों के जीवन को खतरे में डाल रहे हैं जो दमे के मरीज हैं अथवा श्वास की किसी भी बीमारी से पीड़ित हैं.
अपने धर्म की मान्यताओं को प्रदूषित कर धर्म की रक्षा आपको मुबारक भाई. आपके अलावा सभी मित्रों को दीपावली की मुबारकबाद. इस कथित हिन्दू धर्म के समर्थन में प्रोपोगेन्डा फैलाने वाले संघ को तो बिलकुल भी कोई मुबारकबाद नहीं.आप देश विरोधी हैं यह पहले भी पता था पर कल यकीन हो गया वह भी सबूत के साथ. आपने देश को केवल सीमा माना है और देश के नागरिक, देश की वायु, देश के जल को शायद अभी भी पाकिस्तानी मानते हैं.