गर तुम होते पास तो श्वासों को पहचान मिलती तो अधरों की वह प्यास बुझती तो जीवन को नव पहचान मिलती आते जब तुम मेरे पास तो इक नव गीत मैं गुनगुनाता मेरी नयी पहचान बनाता लेट जाता उस गोद में जिस गोद में बसता जीवन है सहलाता उन केशों को कर चक्षु को बंद जब स्वप्न लोक आता तो …
मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देता
मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देता सब दोष अपने संग वरता हूँ। जीवन की इस अनकही पहेली पर स्वयम् के प्राण मैं हरता हूँ। मेरे जीवन का उत्तरदायी कौन यह न कोई पूछेगा इस जीवन की अथाह व्यथा को आखिर कौन अपने संग वरेगा? चल निकला मैं अब उस सफ़र पर, जिसका न कोई अंत है, जिसकी न कोई परिधि …