याद है

याद है, तुम और मैं पहाड़ी वाले शहर की लम्बी, घुमावदार, सड़्क पर बिना कुछ बोले हाथ में हाथ डाले बेमतलब, बेपरवाह मीलों चला करते थे, खम्भों को गिना करते थे, और मैं जब चलते चलते थक जाता था तुम कहती थीं , बस उस अगले खम्भे तक और । आज मैं अकेला ही उस सड़्क पर निकल आया हूँ …