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कोरोना के खतरे, कितने तैयार हैं हम?

प्रधानमंत्री की 26 अप्रेल की मन की बात के बाद मीडिया के माध्यम से छिटपुट खबरें आ रही हैं कि लॉकडाउन के बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। 6 राज्य तो सीधे सीधे इस पक्ष में हैं कि इसे बढ़ाया जाए।  इसके अलावा हरियाणा समेत बहुत से राज्य सीधे कह रहे हैं कि वे इस मामले में केंद्र के दिशानिर्देशों का पालन करेंगे। मंत्रालय की रिपोर्ट्स के मुताबिक लगभग 80 जिले इस समय ऐसे हैं जहाँ कोरोना का नामोनिशान नहीं है। इसमें हरियाणा के 3 जिले भी शामिल हैं। लेकिन कोरोना का खतरा घटने की फ़िलहाल कोई संभावना नहीं दिख रही है। बहुत से हॉटस्पॉट ऐसे बन रहे हैं जहाँ यह कोरोना का कहर बहुतों की जान लेने को स्पष्ट तौर पर उतारू दिख रहा है। 

गुजरात, महाराष्ट्र और  मध्य प्रदेश तीन ऐसे राज्य हैं जहाँ स्पष्ट तौर पर तबाही का अंदेशा दिख रहा है। महाराष्ट्र में मुंबई और पुणे, मध्य प्रदेश में इंदौर और गुजरात में अहमदाबाद अत्यंत खतरनाक परिस्थिति से गुजर रहे हैं। इसके अलावा कोरोना वायरस के लगातार बदलते स्वरूप और म्यूटेशन खतरे को बढ़ा रहे हैं। इस समय की रिपोर्ट को मानें तो कोरोना भारत में पांच अलग अलग म्यूटेशन में पाया जा चुका है। इसके अलावा दो अलग अलग स्ट्रेन का वायरस भारत में इस समय अटैक कर रहा है। आज की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत में 17 अलग अलग देशों के म्यूटेशन्स मौजूद हैं। इसके अलावा एल एवं एस स्ट्रेन के वायरस अलग अलग राज्यों में देखने को मिल रहे हैं।  अब तक के मेडिकल रिसर्च के मुताबिक एल स्ट्रेन वायरस अत्यंत घातक है। अमेरिका और चीन के वुहान में इस स्ट्रेन ने ही कहर बरपाया है। यह वायरस इस समय गुजरात के अहमदाबाद एवं मध्य प्रदेश के इंदौर में दिख रहा है। यही कारण है कि वहां लगातार मरीजों की संख्या एवं मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। आगरा के महापौर ने अपनी लिखी चिट्ठी में कहा है कि यदि हम नहीं सम्भल पाए तो आगरा वुहान में बदलने में देर नहीं लगाएगा। ज्ञातव्य है कि आगरा में नीदरलैंड वाली म्यूटेशन भी देखने को मिली है। अब तक के शोध के मुताबिक चीन अब तक 4300 अलग अलग म्यूटेशंस दर्ज कर चुका है। इससे स्पष्ट पता लगता है कि वायरस अत्यंत घातक है एवं लगातार अपने स्वरूप को ढाल रहा है। इसके कारण न केवल शोध में दिक्क्त आ रही है इसके अलावा इसकी मेडिकेशन भी ठीक से नहीं बन पा रही है।

अहमदाबाद में 27 फरवरी को नमस्ते ट्रम्प कार्यक्रम के बाद लगातार प्रधानमंत्री को घेरा जाता रहा है। हालाँकि इस कार्यक्रम का कोई अब तक वैज्ञानिक लेना देना नहीं मिला है लेकिन अहमदाबाद में एल श्रेणी का स्ट्रेन पाया जा रहा है जिसने अमेरिका को हिला कर रख दिया है। ऐसे में इसे इस कार्यक्रम से जोड़ने के लिए विपक्ष को एक मुद्दा तो मिल ही गया है। जब लॉकडाउन हुआ तो सबसे पहले प्रवासी मजदूरों ने अपने घरों की तरफ लौटना शुरू किया। गुजरात के बड़े शहरों में, मुंबई, दिल्ली में लगातार मजदूरों की भीड़ एकत्रित हुई जिसने सामाजिक दूरी बनाये रखने की अपील को दरकिनार किया। इसके कारण से भी इन शहरों के इंफेक्शन की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। वहीँ दूसरी और मुंबई में महामारी लगातार बढ़ती जा रही है।  मुंबई में सबसे खतरनाक स्थिति धारावी की है जहाँ इसके बढ़ने की वजह से तबाही से इंकार नहीं किया जा सकता है। ध्यान रहे कि धारावी एक ऐसी बस्ती है जहाँ भारत का सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व है। कल तक धारावी में दो सौ से अधिक मरीज आ चुके हैं और उनका बढ़ना लगातार जारी है। हरियाणा कमोबेश बहुत अच्छा चल रहा है। मरीजों की अधिक संख्या सोनीपत, गुड़गांव, नूह , फरीदाबाद, पलवल में देखने को मिल रही है।

सबसे अधिक दिक्क्त रेवेन्यू को लेकर है। इंडस्ट्री बंद होने की वजह से एक्ससाइज एन्ड टेक्सेशन मंत्रालय एवं जीएसटी की रिसिप्ट बहुत ज्यादा नीचे जा चुकी है। जहाँ कुछ प्रदेश शराब की दुकानों को खोलने के पक्ष में दिख रहे हैं वहीँ उनके ऐसा करने पर केंद्र ने पूरी तरह से रोक लगा रखी है। मेडिकल विशेषज्ञों का कहना है कि सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन रहना बहुत मुश्किल है एवं शराब की दुकाने खुलते ही भीड़ के वहाँ टूट पड़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इन सबके बीच विपक्ष अभी भी लगातार आरोप लगा रहा है कि सरकार टैस्टिंग नहीं बढ़ा रही है जिसके कारण तेजी से नए केस का पता नहीं लग रहा है और संक्रमण के फैलाव से रोका नहीं जा रहा है। इन सबके बीच सरकार स्पष्ट तौर पर मान कर चल रही है कि भारत अब तक कम्युनिटी इंफेक्शन की तरफ नहीं बढ़ा है।  आर्थिक हालातों का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि जहाँ केंद्र सरकार ने डीए पर रोक लगाई है तो उत्तरप्रदेश ने छह तरह के भत्तों पर रोक लगा दी है।  हालाँकि यह सब मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए परेशानी का सबब है। सरकार को चाहिए कि अमीरों पर अतिरिक्त कर लगाए ताकि घाटे की भरपाई की जा सके।  फ़िलहाल सरकार की ऐसी मंशा दिखाई नहीं दे रही है। ऐसे में गरीबों की हालात बद से बदतर होना निश्चित है और मध्यमवर्गीय परिवारों का समस्याओं से घिरना एक प्रकार से निश्चित हो चुका है। इस सब का लम्बे समय तक लिए जा रहे विकास के लक्ष्यों पर बहुत भारी प्रभाव पढ़ना निश्चित माना जा सकता है।

इस सब के बीच उम्मीद की किरण केवल प्लाज़्मा थेरपी के कारण घट रहे मरीज ही हैं। इसके अलावा अभी दिल्ली दूर दिखाई देती है और लॉकडाउन का बढ़ना निश्चित दिख रहा है। बाकी आज प्रधानमंत्री सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बात करेंगे। इसके बाद क्या निर्णय होता है यह समय बताएगा।

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95% of Arab Women Never Had Orgasm

“95% of Arab Women Never Had Orgasm” भाजपा के बेंगलोर (साउथ) के सांसद तेजस्वी सूर्या के इस ट्वीट ने इंटरनेट की दुनिया में आग लगा दी है। हालाँकि यह ट्वीट उनके सांसद बनने से पहले का है जब उन्होंने तारिक फतेह को कॉट करते हुए 2015 में यह लिखा था। उस समय वे सांसद भी नहीं थे।  लेकिन जैसे ही उनका स्क्रीनशॉट वायरल हुआ, तैसे ही इंटरनेट की दुनिया में जैसे भूचाल आ गया। अरब देशों के बड़े बड़े राजनयिकों के अलावा शाही परिवारों के लोगों ने भी इस ट्वीट पर विरोध जताया और भारत सरकार को कोसा। कोसने का लेवल यहाँ तक रहा कि इस्लाम फोबिया के नाम से ट्रेंड 21 अप्रेल को समूचे विश्व में टॉप कर गया और आर्टिकल लिखे जाने तक इस हैशटैग के साथ लगभग 697000 ट्वीट हो चुके थे। इस मामले की संवेदना को समझते हुए प्रधानमंत्री को भी बाकायदा पब्लिक में आकर कहना पड़ा कि हम सबको मिल कर धर्म, जाति आदि का भेदभाव किये बिना वायरस से लड़ना है। ज्ञातव्य है कि कोरोना वायरस के फैलाव के शुरू होने के बाद कुछ लोगों ने (जिसमें वरिष्ठ मीडिया भी शामिल था ) कोरोना के फैलाव के लिए दिल्ली में एक जमात के कार्यक्रम को दोषी ठहराना शुरू कर दिया था। एक ऐसे समय में जब समूचा विश्व घरों में बंद है , ऐसे में हर छोटी से छोटी बात को नोटिस किया जा रहा है। हालाँकि जमात में जो हुआ उसको जायज ठहराना अपने आप में नाजायज है फिर भी केवल जमात को ही दोषी ठहराना केवल कोरी राजनीति के अलावा कुछ नहीं है।  हरियाणवी कुश्ती स्टार बबिता फोगट भी इस मामले में कूदी और सीधे आरोप लगाया कि भारत में कोरोना जमात की वजह से फैला है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 19 अप्रेल को आंकड़े जारी करते हुए कहा कि भारत में कुल कोरोना मरीजों में से 29% के लगभग जमात से हैं। अब कम से कम इसे टोटल तो नहीं कहा जा सकता। अन्य 71 % का जमात से कोई लेना देना नहीं है और भारत में पहले कोरोना के मरीज का भी जमात से कोई लेना देना नहीं था। इसे केवल एक सूटेबल राजनीति का ही भाग माना जा सकता है इसके अलावा कुछ नहीं। आंकड़े बताते हैं कि लगभग समूचे विश्व में धार्मिक समूहों की वजह से कोरोना का फैलाव बहुत ज्यादा तेजी से हुआ है। इटली में चर्च तो ब्रिटेन में इस्कॉन की इसमें भूमिका पहले ही सामने आ चुकी है। ऐसे में वायरस को धर्म से जोड़ना राजनीति के अलावा कुछ नहीं है , जिसमें मैं स्वयं को शामिल नहीं पाता हूँ।

खैर जो भी हो यह इस्लाम फोबिया वाली बात सौ आने सही है। किसी भी धर्म के लोग पूरी तरह खराब नहीं हो सकते। यह सच है कि इस्लाम के अंदर कटटरपन है और आजकल आतंकवाद के फैलाव में इस्लाम धर्म को मानने वालों का रोल किसी से छिपा नहीं है। फिर भी मैं यह मानता हूँ कि इसके लिए शरीफ लोगों को तंग नहीं किया जा सकता है। यह भेदभाव हमें खराब करेगा और अरब देशों का यह गुस्सा उसकी शुरुआत भर है। तेल सप्लाई में और भारत के बिजनेस में अरब देशों का बहुत बड़ा रोल है और उसे कमतर कर आंकना ही मूर्खता है। इस्लाम को गाली दे राजनीति चलाना कभी न कभी तो भारी पड़ना ही था। पिछले तीन दिन से हम यह रिजल्ट देख रहे हैं। ठीक है कि भारत में इस्लाम बहुलता में नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि समूचे विश्व में नहीं है। ट्रोल आर्मी को यह एहसास होना चाहिए था कि वैश्वीकरण के इस समय में हम किसी भी देश से दूर नहीं हो सकते हैं, खासकर जब हमारे व्यापारिक हित जुड़े हुए हों। इस्लाम जनसँख्या के आधार  पर विश्व का सबसे ज्यादा माने जाने वाला धर्म है और ज्यादातर देशों के साथ हमारे व्यापारिक रिश्ते भी हैं।  आप समझिये कि अकेले UAE के साथ व्यापार की बात को भी छोड़ दो तो भी लगभग तीन करोड़ भारतीय वहाँ पर काम करते हैं। यह आंकड़ा बता सकता है कि जो बीज हम बो रहे हैं यदि इसकी फसल भारत से बाहर कटनी शुरू हो गयी तो यह भारत और भारतीयों के लिए एक बहुत बड़ा झटका होगी। अतः हमें इस्लाम अथवा धर्मों को राजनीति का भाग बनाने से बचना होगा और इस बात को अहमियत देनी होगी कि भारत एक है  और भारत में रहने  वाले सभी नागरिक भारतीय हैं। इस्लाम को गाली देना देशभक्ति नहीं।

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Donald Trump

डोनाल्ड ट्रम्प बोलने में काफी एग्रेसिव हैं और उनकी भाषा का कभी कोई ठोर ठिकाना नहीं होता। अक्सर अपनी भाषा के लिए उनकी आलोचना की जाती है। जब से कोरोना का कहर समूची दुनिया में बरपा है तब से अमेरिका भी एक बड़ी समस्या में फंस गया है। न केवल अमेरिका इस समय पर इस समय इस बीमारी का एपिक सेंटर बना हुआ है, बल्कि विश्व का सबसे उन्नत देश होने का दावा करने वाला अमेरिका इस समय संसाधनों की कमी से भी गुजर रहा है। अमेरिका के ड्रग कंट्रोलर एफडीए ने कुनीन की गोली को इस बीमारी के इलाज में कारगर बताया है और उसके बाद से ही अमेरिका इस दवाई के स्टॉक में लगा हुआ है। अमेरिका की ही तरह भारत में ICMR ने भी कुनीन को अपने हैल्थ वर्कर्स, डॉक्टर्स और कोरोना के मरीजों के आस पास रहने वालों के लिए प्रिवेंटिव मेडीशियन के रूप में अप्रूव किया है। इसके बाद भारत ने कुनीन के एक्सपोर्ट को बंद कर दिया। यहाँ ज्ञातव्य है कि भारत कुनीन का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत के प्रधानमंत्री मोदी से बात की और प्रधानमंत्री से रिक्वेस्ट की कि प्रतिबंध में ढील दे कुनीन की कुछ सप्लाई अमेरिका को सुनिश्चित की जाए। इसके ठीक एक दिन बाद यानि 7 अप्रेल को ट्रम्प अमेरिका में एक प्रैस कॉन्फ्रेंस को सम्बोधित कर रहे थे और इस दौरान एक रिपोर्टर ने उनसे सवाल पूछा।  ट्रम्प और रिपोर्टर की कन्वर्जेशन निम्नलिखित है : 

‘‘Reporter: Are you worried about retaliation to your decision to ban export of medical Goods like Indian Prime Minister Modi’s decision to not export hydroxychloroquine to the United states or other countries?
Trump: I don’t like that decision if that’s. I didn’t hear that, that was his decision. I know that he stopped it for other countries. I spoke to him yesterday but a very good talk and we will see whether or not that says. I would be surprised if he would, you know because India does very well with the United States. For many years they have been taking advantage of the United States on trade, so i would be suprised of that worse decision. He’d have to tell me that, I spoke to him Sunday morning, called him and I said would appreciate your allowing our supply to come out. If he doesn’t alllow it to come out that would be okay, but of course there may be retaliation why wouldn’t.”

पत्रकार ने सवाल किया, ‘‘आपने चिकित्सा से जुड़े सामानों के निर्यात पर रोक लगाने का फैसला लिया है। क्या आपको नहीं लगता कि इस फैसले के प्रतिशोध में अन्य देश कदम उठाएंगे, जैसे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका या किसी अन्य देश को हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन का निर्यात नहीं करने का निर्णय लिया है?’’

ट्रंप का उत्तर है, ‘‘यदि उन्होंने (मोदी ने) ऐसा निर्णय लिया है तो मुझे यह पसंद नहीं। मैंने ऐसा नहीं सुना, यह उनका निर्णय है। मैं जानता हूं कि उन्होंने अन्य देशों के लिये निर्यात (हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन का) रोक दिया है। मैंने कल उनसे बात की, हमारी काफी अच्छी बात हुई। हम देखेंगे कि वह क्या करते हैं। मुझे हैरानी होगी यदि वह अमेरिका को भी निर्यात रोक देते हैं, क्योंकि आपको मालूम है कि भारत और अमेरिका के कई साल के अच्छे संबंध हैं। उन्होंने कई साल से व्यापार में अमेरिका से फायदा उठाया है, इस कारण भी मुझे हैरानी होगी। उन्हें मुझे इसके बारे में बताना चाहिये था, मैंने रविवार की सुबह उनसे बात की, मैंने उन्हें फोन किया था। मैंने कहा कि यदि वे हमें हमारी सप्लाई भेजते हैं तो यह सराहनीय होगा। यदि वे इसकी अनुमति नहीं देते हैं…तब भी ठीक है, निश्चित तौर पर प्रतिशोध में कदम उठाये जाये जा सकते हैं, क्यों नहीं उठाये जायेंगे।’’

सभी लोग अलग अलग तरीके से इस बात को समझाने की कोशिश कर रहे हैं। मेरे लिए यह भाषा घोर आपत्तिजनक है। इसका उत्तर यह है:

पहला, अमेरिका अपने देश के दिवा निर्माताओं के हितों को सुरक्षित रखने के लिए हमेशा प्रतिबंध लगा कर रखता है और विदेशी कंपनियों को वहां इजाजत नहीं मिलती है।  कोरोना का कहर भारत के लिए भी उतना ही गंभीर है जितना अमेरिका के लिए। हमारी 140 करोड़ जनसंख्या को भी सुरक्षित रखना सरकार का कर्त्तव्य है।  हमने ठीक वैसे ही प्रतिबंध लगाया है जिस प्रकार अमेरिका ने लगाया है।  अमेरिका ने भारत से रिक्वेस्ट की इसमें कोई दिक्कत नहीं और मानवीय आधार पर सप्लाई को खोला जाना गलत भी नहीं है। लेकिन यह मानवीय आधार पर हो न कि जबरदस्ती।

मुझे यहाँ प्रतिशोध शब्द से गहरी आपत्ति है। रिपोर्टर ने किस भाषा का प्रयोग किया हमें उससे लेना देना नहीं है , लेकिन राष्ट्रअध्यक्ष ने किस भाषा में उत्तर दिया यह मायने रखता है। पहला ट्रम्प ने कहा कि उन्होंने भारत को कहा कि वो उनकी सप्लाई सुनिश्चित करें।  मुझे याद नहीं आता कोई ऐसा समझौता अब तक हुआ है जिसमें भारत ने अमेरिका को कुनीन की सप्लाई के लिए कहा है तो यह सप्लाई उनकी कैसे हुई ? सप्लाई उनकी तब होती यदि समझौता होता और समझौते के बावजूद भी भारत उसे न भेजता। यह हेकड़ी है और इस हेकड़ी को स्पष्ट तौर पर समझा जा सकता है।

दूसरा 1965 को याद कर रहा हूँ। भारत पाकिस्तान के प्रथम युद्ध के दौरान अमेरिका ने भारत को गेहूं की सप्लाई रोक दी थी। क्या वहां उनका मानवीय आधार खत्म हो गया था ?  तब तात्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान, जय किसान का नारा देते हुए भारत में उत्पादन बढ़ाया और सप्ताह में एक दिन व्रत रखने के लिए समस्त भारतीय नागरिकों को कहा गया।  तब जाकर भारत में भुखमरी क़ाबू आई थी।  ऐसे में अमेरिका को कहाँ तक दोस्त माना जाए।

तीसरा स्पष्ट तौर पर ट्रम्प ने पत्रकार की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा है कि यदि भारत ने उन्हें उनकी कथित सप्लाई नहीं दी तो प्रतिशोधात्मक कार्यवाही की जा सकती है। यह भाषा अत्यंत आपत्तिजनक एवं घटिया है और मैं भारत का नागरिक होने के नाते इसका घोर विरोध करता हूँ।

अब ट्रम्प की इस भाषा का समर्थन कोई करे तो करे इससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता है।  न तो सप्लाई उनकी थी और न ही उस देश को किसी भी प्रकार की प्रतिशोधात्मक कार्यवाही करने का ही कोई हक़ है जबकि उसने मेडिकल उपकरणों के एक्सपोर्ट पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया हुआ है और अमेरिकी रेगुलेटर एफडीए भारतीय कंपनियों को वहां पर जेनेरिक अथवा अन्य दवाइयां बेचने पर लगातार रोक लगाता रहा है ताकि उनके देश की कंपनियों के हित सुरक्षित रहें।