मेरी जाति “आम आदमी” है.
सड़क पर फटे हाल एक पुरुष को खड़ा देख,नेता जी रुके,
उनसे पूछा,
तुम कौन हो भाई,
बड़े गरीब और पिछड़े हुए लगते हो,
कितने पढ़े लिखे हो, क्या करते हो,
परिवार में कौन कौन है, क्या क्या करता है,
तुम गरीबी रेखा से नीचे हो?
अगर हो तो तुम्हें चावल मिलेगा, तेल मिलेगा घर मिलेगा,
तुम पिछड़ी जाति के हो, अगर हो तो तुम्हें छात्रवृति मिलेगी,
नौकरी मिलेगी, प्रोत्साहन मिलेगा,
तुम अनुसूचित जाति के हो?
अगर हो तो तुम्हें सरकार नौकरी देगी, बच्चों को पढ़ाएगी,
सब कुछ तुम्हें मुफ्त मिलेगा, तुम बोलो भाई तुम कौन हो?
तुम महिला होते तो तुम्हें अलग से खड़े होने का मौका मिलता,
आरक्षण मिलता, सब कुछ मिलता, पर तुम कुछ बोलते नहीं, कुछ बोलो!
इतनी देर से परेशान वो पुरुष बोला,
नेता जी,
बड़ा दुःख है मुझे कि मैं इनमें से कुछ नहीं,
पर आप समझ पायेंगे ही नहीं मैं क्या हूँ,
भारत की सभी सरकारें मेरे नाम से मत लेती हैं,
मेरा नाम हर घोषणा पत्र में होता है, मेरे नाम से सब आगे बढ़ते हैं,
आपने भी कभी न कभी मेरी जाति का नाम जरूर सुना होगा,
पर दुःख है कि यहाँ मुझे पूछने वाला कोई नहीं,
मैं भूखा हूँ, अनाज नहीं मिलता,
मेरे बच्चे पढना चाहते हैं पर उन्हें दाखिला नहीं मिलता,
मैं पढ़ा लिखा हूँ, मुझे काम नहीं मिलता,
रहने को छत नहीं, पर मुझे घर नहीं मिलता.
नेता जी हैरान परेशान देखते रहे,
वो पुरुष बोलता रहा,
नेता जी मेरी जाति”आम आदमी” है,
इस देश में सबको सब कुछ मिलता है,
पर मुझे कोई नहीं पूछता,
हर चुनाव में मैं मत का प्रयोग करता हूँ,
मेरे मत से सरकार बदलती है,
पर मैं पचास साल पहले भी भूखा था,
आज भी हूँ.
मैं आम आदमी हूँ,
क्या आप मेरी सहायता करेंगे?
नेता जी अनमना सा मूंह लेकर अपनी गाडी में चले गए,
और आम आदमी अगले नेता जी कि गाडी का इंतज़ार करने लगा.
—–रविन्द्र सिंह ढुल, १४-०६-२०११, जींद