आह देखो यह राह मैंने ही बनाई थी इस राह पर माटी मैंने ही बिछाई थी इस माटी से तुमने एक मूरत बनाई थी इस मूरत से निकल तुम आज उस नए राह पर चले गए जिस राह पर न मेरी माटी है न मेरा अक्स पर अपना ध्यान रखना देखना बिन माटी के अक्सर पैरों में कंकड़ चल जाते …
मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देता
मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देता सब दोष अपने संग वरता हूँ। जीवन की इस अनकही पहेली पर स्वयम् के प्राण मैं हरता हूँ। मेरे जीवन का उत्तरदायी कौन यह न कोई पूछेगा इस जीवन की अथाह व्यथा को कौन अपने संग वरेगा? चल निकला मैं अब उस सफ़र पर, जिसका न कोई अंत है, जिसकी न कोई परिधि है, …
पास खडा था भ्रष्टाचार
सुबह उठ कर आँख खुली तो पास खडा था भ्रष्टाचार, अट्टहास लगाता हुआ, प्रश्न चिह्न लगाता हुआ. जब पूछा मैंने, तुझमें इतने प्राण कहाँ से आये, के तुम बिन पूछे, बिन बताए मेरे घर भी दौड़ आये. हंसता हुआ, वो बोला, तुम शायद अवगत नहीं, कल रात ही संसद में मुझे जीवनदान मिला है. देश शायद सो रहा था, दिवा …
हाँ मैं चलती हूँ
हाँ मैं चलती हूँ तुमने मुझे चलने से रोका तुमने मुझे जीने से रोका तुमने मुझे गाने से रोका तुमने मुझे खाने से रोका मेरे कदम कदम पर कांटे बिछाये पर मेरे कदम कभी न रुक पाये फिर भी मैं चलती हूँ चलते चलते खिलती हूँ चलते चलते जलती हूँ मगर फिर भी मैं चलती हूँ सोचते तो बहुत होंगे तुम …
गर तुम होते पास
गर तुम होते पास तो श्वासों को पहचान मिलती तो अधरों की वह प्यास बुझती तो जीवन को नव पहचान मिलती आते जब तुम मेरे पास तो इक नव गीत मैं गुनगुनाता मेरी नयी पहचान बनाता लेट जाता उस गोद में जिस गोद में बसता जीवन है सहलाता उन केशों को कर चक्षु को बंद जब स्वप्न लोक आता तो …
अविराम चलता यह जीवन
अविराम चलता यह जीवन इक नए मोड़ पर खड़ा है।पूछता है क्या किया जो मुझे कोसते हो कब मैंने तुम्हें हराया; कब तुम्हारा दिल दुखाया कब किस्मत के लेखे को; मैं बदल पाया! मैंने कहा ऐ जीवन; कोसता यूं नहीं मैं के मैंने ठोकर खाई है; कोसता यूं नहीं के मैं आज हारा हुआ हूँ; कोसता यूं हूँ के भाग्य …
भ्रष्ट देश के भ्रष्ट निवासी, हम सब एक हैं
भ्रष्ट देश के भ्रष्ट निवासी, हम सब एक हैं. एक देश है, हजारों भाषा, हजारों जाति और अनेक धर्म. उबलता है देश सारा, के भारत नहीं है हमारा. उबलते हैं सभी धर्म, के भारत नहीं है हमारा. एक धर्म है हमारा, जो रखे देश को एक, इस देश के भ्रष्ट लोग न पूछे कोई जाति, बस हाथ फैलाकर करते स्वागत, …
सरकार और आम आदमी…
मैं खड़ा हूँ, मेरा अंतर्द्वंद मुझे जीने न दे रहा है, जब सारा भारत खड़ा है तो मैं क्यों सो रहा हूँ? ऐसा सोच आम आदमी एक दिन सारे भारत के साथ धरने पर बैठ गया, सुबह पत्रकारों ने आम आदमी को नेता घोषित किया, दोपहर आम आदमी को भारत का भविष्य घोषित किया, शाम आई और आम आदमी ने …
मेरी जाति “आम आदमी” है
मेरी जाति “आम आदमी” है. सड़क पर फटे हाल एक पुरुष को खड़ा देख,नेता जी रुके, उनसे पूछा, तुम कौन हो भाई, बड़े गरीब और पिछड़े हुए लगते हो, कितने पढ़े लिखे हो, क्या करते हो, परिवार में कौन कौन है, क्या क्या करता है, तुम गरीबी रेखा से नीचे हो? अगर हो तो तुम्हें चावल मिलेगा, तेल मिलेगा घर …
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