“95% of Arab Women Never Had Orgasm” भाजपा के बेंगलोर (साउथ) के सांसद तेजस्वी सूर्या के इस ट्वीट ने इंटरनेट की दुनिया में आग लगा दी है। हालाँकि यह ट्वीट उनके सांसद बनने से पहले का है जब उन्होंने तारिक फतेह को कॉट करते हुए 2015 में यह लिखा था। उस समय वे सांसद भी नहीं थे। लेकिन जैसे ही उनका स्क्रीनशॉट वायरल हुआ, तैसे ही इंटरनेट की दुनिया में जैसे भूचाल आ गया। अरब देशों के बड़े बड़े राजनयिकों के अलावा शाही परिवारों के लोगों ने भी इस ट्वीट पर विरोध जताया और भारत सरकार को कोसा। कोसने का लेवल यहाँ तक रहा कि इस्लाम फोबिया के नाम से ट्रेंड 21 अप्रेल को समूचे विश्व में टॉप कर गया और आर्टिकल लिखे जाने तक इस हैशटैग के साथ लगभग 697000 ट्वीट हो चुके थे। इस मामले की संवेदना को समझते हुए प्रधानमंत्री को भी बाकायदा पब्लिक में आकर कहना पड़ा कि हम सबको मिल कर धर्म, जाति आदि का भेदभाव किये बिना वायरस से लड़ना है। ज्ञातव्य है कि कोरोना वायरस के फैलाव के शुरू होने के बाद कुछ लोगों ने (जिसमें वरिष्ठ मीडिया भी शामिल था ) कोरोना के फैलाव के लिए दिल्ली में एक जमात के कार्यक्रम को दोषी ठहराना शुरू कर दिया था। एक ऐसे समय में जब समूचा विश्व घरों में बंद है , ऐसे में हर छोटी से छोटी बात को नोटिस किया जा रहा है। हालाँकि जमात में जो हुआ उसको जायज ठहराना अपने आप में नाजायज है फिर भी केवल जमात को ही दोषी ठहराना केवल कोरी राजनीति के अलावा कुछ नहीं है। हरियाणवी कुश्ती स्टार बबिता फोगट भी इस मामले में कूदी और सीधे आरोप लगाया कि भारत में कोरोना जमात की वजह से फैला है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 19 अप्रेल को आंकड़े जारी करते हुए कहा कि भारत में कुल कोरोना मरीजों में से 29% के लगभग जमात से हैं। अब कम से कम इसे टोटल तो नहीं कहा जा सकता। अन्य 71 % का जमात से कोई लेना देना नहीं है और भारत में पहले कोरोना के मरीज का भी जमात से कोई लेना देना नहीं था। इसे केवल एक सूटेबल राजनीति का ही भाग माना जा सकता है इसके अलावा कुछ नहीं। आंकड़े बताते हैं कि लगभग समूचे विश्व में धार्मिक समूहों की वजह से कोरोना का फैलाव बहुत ज्यादा तेजी से हुआ है। इटली में चर्च तो ब्रिटेन में इस्कॉन की इसमें भूमिका पहले ही सामने आ चुकी है। ऐसे में वायरस को धर्म से जोड़ना राजनीति के अलावा कुछ नहीं है , जिसमें मैं स्वयं को शामिल नहीं पाता हूँ।
खैर जो भी हो यह इस्लाम फोबिया वाली बात सौ आने सही है। किसी भी धर्म के लोग पूरी तरह खराब नहीं हो सकते। यह सच है कि इस्लाम के अंदर कटटरपन है और आजकल आतंकवाद के फैलाव में इस्लाम धर्म को मानने वालों का रोल किसी से छिपा नहीं है। फिर भी मैं यह मानता हूँ कि इसके लिए शरीफ लोगों को तंग नहीं किया जा सकता है। यह भेदभाव हमें खराब करेगा और अरब देशों का यह गुस्सा उसकी शुरुआत भर है। तेल सप्लाई में और भारत के बिजनेस में अरब देशों का बहुत बड़ा रोल है और उसे कमतर कर आंकना ही मूर्खता है। इस्लाम को गाली दे राजनीति चलाना कभी न कभी तो भारी पड़ना ही था। पिछले तीन दिन से हम यह रिजल्ट देख रहे हैं। ठीक है कि भारत में इस्लाम बहुलता में नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि समूचे विश्व में नहीं है। ट्रोल आर्मी को यह एहसास होना चाहिए था कि वैश्वीकरण के इस समय में हम किसी भी देश से दूर नहीं हो सकते हैं, खासकर जब हमारे व्यापारिक हित जुड़े हुए हों। इस्लाम जनसँख्या के आधार पर विश्व का सबसे ज्यादा माने जाने वाला धर्म है और ज्यादातर देशों के साथ हमारे व्यापारिक रिश्ते भी हैं। आप समझिये कि अकेले UAE के साथ व्यापार की बात को भी छोड़ दो तो भी लगभग तीन करोड़ भारतीय वहाँ पर काम करते हैं। यह आंकड़ा बता सकता है कि जो बीज हम बो रहे हैं यदि इसकी फसल भारत से बाहर कटनी शुरू हो गयी तो यह भारत और भारतीयों के लिए एक बहुत बड़ा झटका होगी। अतः हमें इस्लाम अथवा धर्मों को राजनीति का भाग बनाने से बचना होगा और इस बात को अहमियत देनी होगी कि भारत एक है और भारत में रहने वाले सभी नागरिक भारतीय हैं। इस्लाम को गाली देना देशभक्ति नहीं।