मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देता

मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देता

सब दोष अपने संग वरता हूँ।
जीवन की इस अनकही पहेली पर
स्वयम् के प्राण मैं हरता हूँ।

मेरे जीवन का उत्तरदायी कौन
यह न कोई पूछेगा

इस जीवन की अथाह व्यथा को
कौन अपने संग वरेगा?

चल निकला मैं अब
उस सफ़र पर,
जिसका न कोई अंत है,
जिसकी न कोई परिधि है,

पर मैं तुम्हें  कोई दोष नहीं देता,
जाने से पहले सब दोष स्वयं पर वरता हूँ।

पास खडा था भ्रष्टाचार

सुबह उठ कर आँख खुली तो पास खडा था भ्रष्टाचार,

अट्टहास लगाता हुआ, प्रश्न चिह्न लगाता हुआ.
जब पूछा मैंने, तुझमें इतने प्राण कहाँ से आये,
के तुम बिन पूछे, बिन बताए मेरे घर भी दौड़ आये.
हंसता हुआ, वो बोला, तुम शायद अवगत नहीं,
कल रात ही संसद में मुझे जीवनदान मिला है.
देश शायद सो रहा था, दिवा स्वप्न के बीज अपने घर में बो रहा था,
इतने में एक कानून आया, जिसने भ्रष्टाचार को मिटाने का संकल्प दोहराया.
बस उस कानून से मुझे जीवन दान मिला है,
अब तक तो मैं सिर्फ घर के बाहर सड़क पर, दफ्तरों में पाया जाता था,
अब मैं घर में, आपके साथ खड़ा,
अट्टहास करूँगा, आपकी बेचैनी पर,
मेरा जीवन हरण करने चला था जो चौकीदार,
उसे ही रिश्वत से मैंने अपने साथ मिला लिया…..

हाँ मैं चलती हूँ

हाँ मैं चलती हूँ

तुमने मुझे चलने से रोका
तुमने मुझे जीने से रोका
तुमने मुझे गाने से रोका
तुमने मुझे खाने से रोका

मेरे कदम कदम पर कांटे बिछाये
पर मेरे कदम कभी न रुक पाये

फिर भी मैं चलती हूँ
चलते चलते खिलती हूँ
चलते चलते जलती हूँ

मगर फिर भी मैं चलती हूँ

सोचते तो बहुत होंगे तुम
क्यों न मैं रुक पायी
क्यों न तुम मुझे रोक पाये?

मैं चलती हूँ क्योंकि
मेरे चलने से ही तुम चलते हो
गर मैं रुकी
तो तुम रुक जाओगे

तो मैं चलती हूँ
चलते चलते जलती हूँ
फिर भी मैं चलती हूँ।