सेठ के चार सेवक और “लोकपाल”

एक कथा प्रस्तुत कर रहा हूँ, ये मुझे एक परम मित्र ने पिछले दिनों सुनाई थी. एक सेठ था जो हर रोज रात को एक किलोग्राम दूध पीता था. उसने अपने बुढापे के कारण एक सेवक रख लिया. उस सेवक का कार्य केवल रात को दूध गर्म करके सेठ को देना था. उस नौकर ने कुछ ही दिन में गड़बड़ शुरू कर दी. वह रात को एक पाव दूध स्वयं पी जाता और बाकी सेठ को पानी मिला के दे देता. सेठ को कुछ न सूझी, उसने एक और सेवक रख लिया, उस सेवक का काम था पुराने नौकर को देखना कि कहीं वह गड़बड़ तो नहीं कर रहा. अब दोनों आपस में मिल गए और सेठ को केवल आधा किलो दूध मिलता. सेठ बड़ा परेशान हुआ, कुछ सूझता न देख उसने एक सेवक को रख लिया और दोनों सेवकों को उसके अन्दर कर दिया. अब तीनो ने मिल बाँट कर दूध पीना शुरू कर दिया और सेठ को केवल एक पाव दूध देते. सेठ बेहद परेशान हो गया और उसने एक सेवक रख लिया अपने बाकी भ्रष्ट सेवकों के ऊपर. उसे जिम्मेदारी दी गयी कि अपने तीन सेवकों के भ्रष्ट आचरण पर नज़र रखे और समय पर सेठ को बताए. उस सेवक ने पहले तो तीनों सेवकों को देखा, सेठ को अपने विश्वास में लिया और फिर अपना हिस्सा माँगा. जब तीनों ने बताया कि वे कैसे सेठ को बेवक़ूफ़ बना रहे हैं तो चौथा सेवक बोला अब सेठ को कोई दूध नहीं देगा. योजना अनुसार चौथे सेवक ने सेठ को दूध नहीं दिया. थका हुआ सेठ रात को दूध का इंतज़ार करते हुए सो गया. सोने के बाद चौथे सेवक ने सेठ के होठों पर मलाई लगा दी. सुबह उठने के बाद सेठ ने सबसे पहले दूध की बात पूछी तो सेवक ने बताया सेठ जी अपने मूंह पर लगी मलाई देख लो, रात को आपने दूध पिया तो था, पर शायद आप भूल गए.
अब सोचिये, कहीं आपका लोकपाल सेठ के चौथे सेवक की तरह तो नहीं है. क्या नैतिक उत्थान के बिना राष्ट्र का उत्थान संभव है? मेरा उत्तर “नहीं ” होगा.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *