डोनाल्ड ट्रम्प बोलने में काफी एग्रेसिव हैं और उनकी भाषा का कभी कोई ठोर ठिकाना नहीं होता। अक्सर अपनी भाषा के लिए उनकी आलोचना की जाती है। जब से कोरोना का कहर समूची दुनिया में बरपा है तब से अमेरिका भी एक बड़ी समस्या में फंस गया है। न केवल अमेरिका इस समय पर इस समय इस बीमारी का एपिक सेंटर बना हुआ है, बल्कि विश्व का सबसे उन्नत देश होने का दावा करने वाला अमेरिका इस समय संसाधनों की कमी से भी गुजर रहा है। अमेरिका के ड्रग कंट्रोलर एफडीए ने कुनीन की गोली को इस बीमारी के इलाज में कारगर बताया है और उसके बाद से ही अमेरिका इस दवाई के स्टॉक में लगा हुआ है। अमेरिका की ही तरह भारत में ICMR ने भी कुनीन को अपने हैल्थ वर्कर्स, डॉक्टर्स और कोरोना के मरीजों के आस पास रहने वालों के लिए प्रिवेंटिव मेडीशियन के रूप में अप्रूव किया है। इसके बाद भारत ने कुनीन के एक्सपोर्ट को बंद कर दिया। यहाँ ज्ञातव्य है कि भारत कुनीन का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत के प्रधानमंत्री मोदी से बात की और प्रधानमंत्री से रिक्वेस्ट की कि प्रतिबंध में ढील दे कुनीन की कुछ सप्लाई अमेरिका को सुनिश्चित की जाए। इसके ठीक एक दिन बाद यानि 7 अप्रेल को ट्रम्प अमेरिका में एक प्रैस कॉन्फ्रेंस को सम्बोधित कर रहे थे और इस दौरान एक रिपोर्टर ने उनसे सवाल पूछा। ट्रम्प और रिपोर्टर की कन्वर्जेशन निम्नलिखित है :
‘‘Reporter: Are you worried about retaliation to your decision to ban export of medical Goods like Indian Prime Minister Modi’s decision to not export hydroxychloroquine to the United states or other countries?
Trump: I don’t like that decision if that’s. I didn’t hear that, that was his decision. I know that he stopped it for other countries. I spoke to him yesterday but a very good talk and we will see whether or not that says. I would be surprised if he would, you know because India does very well with the United States. For many years they have been taking advantage of the United States on trade, so i would be suprised of that worse decision. He’d have to tell me that, I spoke to him Sunday morning, called him and I said would appreciate your allowing our supply to come out. If he doesn’t alllow it to come out that would be okay, but of course there may be retaliation why wouldn’t.”
पत्रकार ने सवाल किया, ‘‘आपने चिकित्सा से जुड़े सामानों के निर्यात पर रोक लगाने का फैसला लिया है। क्या आपको नहीं लगता कि इस फैसले के प्रतिशोध में अन्य देश कदम उठाएंगे, जैसे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका या किसी अन्य देश को हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन का निर्यात नहीं करने का निर्णय लिया है?’’
ट्रंप का उत्तर है, ‘‘यदि उन्होंने (मोदी ने) ऐसा निर्णय लिया है तो मुझे यह पसंद नहीं। मैंने ऐसा नहीं सुना, यह उनका निर्णय है। मैं जानता हूं कि उन्होंने अन्य देशों के लिये निर्यात (हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन का) रोक दिया है। मैंने कल उनसे बात की, हमारी काफी अच्छी बात हुई। हम देखेंगे कि वह क्या करते हैं। मुझे हैरानी होगी यदि वह अमेरिका को भी निर्यात रोक देते हैं, क्योंकि आपको मालूम है कि भारत और अमेरिका के कई साल के अच्छे संबंध हैं। उन्होंने कई साल से व्यापार में अमेरिका से फायदा उठाया है, इस कारण भी मुझे हैरानी होगी। उन्हें मुझे इसके बारे में बताना चाहिये था, मैंने रविवार की सुबह उनसे बात की, मैंने उन्हें फोन किया था। मैंने कहा कि यदि वे हमें हमारी सप्लाई भेजते हैं तो यह सराहनीय होगा। यदि वे इसकी अनुमति नहीं देते हैं…तब भी ठीक है, निश्चित तौर पर प्रतिशोध में कदम उठाये जाये जा सकते हैं, क्यों नहीं उठाये जायेंगे।’’
सभी लोग अलग अलग तरीके से इस बात को समझाने की कोशिश कर रहे हैं। मेरे लिए यह भाषा घोर आपत्तिजनक है। इसका उत्तर यह है:
पहला, अमेरिका अपने देश के दिवा निर्माताओं के हितों को सुरक्षित रखने के लिए हमेशा प्रतिबंध लगा कर रखता है और विदेशी कंपनियों को वहां इजाजत नहीं मिलती है। कोरोना का कहर भारत के लिए भी उतना ही गंभीर है जितना अमेरिका के लिए। हमारी 140 करोड़ जनसंख्या को भी सुरक्षित रखना सरकार का कर्त्तव्य है। हमने ठीक वैसे ही प्रतिबंध लगाया है जिस प्रकार अमेरिका ने लगाया है। अमेरिका ने भारत से रिक्वेस्ट की इसमें कोई दिक्कत नहीं और मानवीय आधार पर सप्लाई को खोला जाना गलत भी नहीं है। लेकिन यह मानवीय आधार पर हो न कि जबरदस्ती।
मुझे यहाँ प्रतिशोध शब्द से गहरी आपत्ति है। रिपोर्टर ने किस भाषा का प्रयोग किया हमें उससे लेना देना नहीं है , लेकिन राष्ट्रअध्यक्ष ने किस भाषा में उत्तर दिया यह मायने रखता है। पहला ट्रम्प ने कहा कि उन्होंने भारत को कहा कि वो उनकी सप्लाई सुनिश्चित करें। मुझे याद नहीं आता कोई ऐसा समझौता अब तक हुआ है जिसमें भारत ने अमेरिका को कुनीन की सप्लाई के लिए कहा है तो यह सप्लाई उनकी कैसे हुई ? सप्लाई उनकी तब होती यदि समझौता होता और समझौते के बावजूद भी भारत उसे न भेजता। यह हेकड़ी है और इस हेकड़ी को स्पष्ट तौर पर समझा जा सकता है।
दूसरा 1965 को याद कर रहा हूँ। भारत पाकिस्तान के प्रथम युद्ध के दौरान अमेरिका ने भारत को गेहूं की सप्लाई रोक दी थी। क्या वहां उनका मानवीय आधार खत्म हो गया था ? तब तात्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान, जय किसान का नारा देते हुए भारत में उत्पादन बढ़ाया और सप्ताह में एक दिन व्रत रखने के लिए समस्त भारतीय नागरिकों को कहा गया। तब जाकर भारत में भुखमरी क़ाबू आई थी। ऐसे में अमेरिका को कहाँ तक दोस्त माना जाए।
तीसरा स्पष्ट तौर पर ट्रम्प ने पत्रकार की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा है कि यदि भारत ने उन्हें उनकी कथित सप्लाई नहीं दी तो प्रतिशोधात्मक कार्यवाही की जा सकती है। यह भाषा अत्यंत आपत्तिजनक एवं घटिया है और मैं भारत का नागरिक होने के नाते इसका घोर विरोध करता हूँ।
अब ट्रम्प की इस भाषा का समर्थन कोई करे तो करे इससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता है। न तो सप्लाई उनकी थी और न ही उस देश को किसी भी प्रकार की प्रतिशोधात्मक कार्यवाही करने का ही कोई हक़ है जबकि उसने मेडिकल उपकरणों के एक्सपोर्ट पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया हुआ है और अमेरिकी रेगुलेटर एफडीए भारतीय कंपनियों को वहां पर जेनेरिक अथवा अन्य दवाइयां बेचने पर लगातार रोक लगाता रहा है ताकि उनके देश की कंपनियों के हित सुरक्षित रहें।