समस्त ज्ञान असत्य है एवं समस्त सत्य ज्ञान का स्वरुप है। समस्त सांसारिक ज्ञान केवल मात्र तर्क की शक्ति पर टिका है एवं जब तक वह तर्क की सीमा को पार नहीं कर देता उसे संसार ज्ञान की श्रेणी में नहीं रखता। श्री रामकृष्ण परमहँस कहते हैं कि ज्ञान विश्वास से पैदा होता है न कि तर्क से। प्रथम आपकी बुद्धि स्वीकार करेगी उस उस अनजान को उसके बाद ही ज्ञान पैदा होगा एवं जन्म लेगा। यदि बुद्धि स्वीकार करने की स्थिति में होगी ही नहीं तो ज्ञान आ ही नहीं सकता। साकार ब्रह्म अथवा निराकार ब्रह्म दोनों ही उस ज्ञान के स्वरूप हैं। श्री परमहँस भी उस ज्ञान से जन्म लेते हैं तथा श्री दयानंद भी। जहाँ एक ओर हजरत मोहम्मद उस ही ज्ञान से जन्म लेते हैं तो दूसरी ओर ओशो भी उस ज्ञान का स्वरुप मात्र है। यदि हम इन परस्पर विरोधाभासी महापुरुषों को एक तर्क की श्रेणी में रखेंगे तो हम समझ पाएंगे कि सभी का ज्ञान अधूरा है। वहीँ दूसरी ओर यदि किसी एक के ऊपर दृढ विश्वास किया जाए तो सभी पूर्ण हैं। अतः स्पष्ट है कि विश्वास कीजिये कि तर्क के परे झाँका जा सकता है। माँ भारती आप सबका मार्ग प्रशस्त करे।