लाओ त्से लाओ त्से lao

लाओ त्से

लाओ त्से चीन के एक महान दार्शनिक हुए। बिल्कुल अलग और बिलकुल जुदा। उनकी बुद्धि से प्रभावित हो एक बार उनके राज्य के राजा ने उन्हें कहा कि आप ह्मारे राज्य के न्यायाधीश बन जाइये। उन्होंने मना किया कि मैं इस लायक नहीं। आप गलत आदमी से संपर्क कर रहे हैं। पर राजा के जिद करने पर लाओ ने कहा …

मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देता

मैं तुम्हें कोई दोष नहीं देता सब दोष अपने संग वरता हूँ। जीवन की इस अनकही पहेली पर स्वयम् के प्राण मैं हरता हूँ। मेरे जीवन का उत्तरदायी कौन यह न कोई पूछेगा इस जीवन की अथाह व्यथा को आखिर कौन अपने संग वरेगा? चल निकला मैं अब उस सफ़र पर, जिसका न कोई अंत है, जिसकी न कोई परिधि …

एक बेरोजगार

आज मानव सड़क पर चला जा रहा था। उसके मन में कई तरह की गुत्थियां चल रही थीं।नौकरी मिल नहीं रही थी, ऊपर से माँ उसकी चिंता में मरी जा रही थी। मानव के तीन भाइयों में वह ही ऐसा था जिसके पास नौकरी नहीं थी, इसलिए उसे घर में कोई बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती थी। पिता जी …

पश्चाताप

शहर में चारों और दंगे हो रहे थे और तबाही मची थी, तभी एक छोटी सी कुटिया के पास आकर भीड़ रुकी. मुस्लिम लोगों की भीड़ थी वह; उस भीड़ ने आवाज लगाईं, “जो कोई भी है बाहर निकले, अपना मजहब बताये वरना हम कुटिया को जला देंगे”. एक अधेड़ उम्र की बुढ़िया बाहर आई, एक प्रश्न चिह्न लगाते हुए …

आजादी की छुट्टी।

आजादी की छुट्टी पर एक छोटा बच्चा अपनी माँ से पूछ बैठा, “माँ, ये छुट्टी क्यों होती है” माँ परेशान रहती हुई कोई जवाब न दे पायी. इतने में बच्चे ने फिर से पूछा, “माँ जवाब क्यों नहीं देती?” माँ ने सोचा फिर जवाब दिया,”बेटा क्योंकि आज के दिन हमें गुलामी से आजादी मिली थी, इस से पहले हमारे लोग …

तलाश

इक आह सी दिल में उठती है, इक दर्द जिगर में उठता है, हम रात में उठके रोते हैं, जब सारा ज़माना सोता है.   ये मेरा जीवन है, जो जाने मुझ से क्या चाहता है.  दिन होता है तो कुछ और तलाश होती है, रात होती है तो कुछ और तलाश होती है.  जब चलते हैं तो इक मंजिल …

पास खडा था भ्रष्टाचार

सुबह उठ कर आँख खुली तो पास खडा था भ्रष्टाचार,   अट्टहास लगाता हुआ, प्रश्न चिह्न लगाता हुआ. जब पूछा मैंने, तुझमें इतने प्राण कहाँ से आये, के तुम बिन पूछे, बिन बताए मेरे घर भी दौड़ आये. हंसता हुआ, वो बोला, तुम शायद अवगत नहीं, कल रात ही संसद में मुझे जीवनदान मिला है. देश शायद सो रहा था, …

धर्मनिरपेक्षता

रूचीनां वैचित्र्य अदृजुकुटिलनानापथजुषां. नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसमर्णाव इव. (शिव महिम्नः स्तोत्र, ७ ) अर्थात हे शिव, जिस प्रकार विभिन्न नदियाँ विभिन्न पर्वतों से निकलकर सरल तथा वक्र गति से प्रवाहित होती हुई अंततः समुद्र में ही मिल जाती है, उसी प्रकार अपनी विभिन्न प्रवृतियों के कारण जिन विभिन्न मार्गों को लोग ग्रहण करते हैं, सरल या वक्र रूप में विभिन्न लगने पर …

कानून की देवी तेरी जय जय कार

कानून की देवी तेरी जय जय कार, छाया जब हर जगह अन्धकार, राजा करता हो जनता पर अत्याचार, ले हाथ में तराजू, जब उठाया तुमने यह बीड़ा, हिल गयी सरकारें, पलट गए ताज. कहती सरकारें, सीमा में नहीं कानून अब, देवी करती सरकार पर अत्याचार, पर पूछती है कलम मेरी इन सरकारों से, क्यों छीना निवाला गरीब का, क्यों फैलाया …